श्रीप्रबोधानन्द सरस्वतीकी भजनकुटी और समाधि 

अ‍मूल्य ग्रन्थों के रचयिता

सुप्रसिद्ध ‘राधारससुधानिधि’, ‘वृन्दावनमहिमामृत’, ‘श्रीचैतन्यचन्द्रामृत’ और ‘संगीत- माधव’ आदि ग्रन्थोंके रचयिता श्रीप्रबोधानन्द अपने पूर्व जीवनमें श्रीरङ्गम निवासी एवं श्रीलक्ष्मीनारायणके उपासक थे। वे प्रसिद्ध गोपाल भट्ट गोस्वामीके पितृव्य एवं गुरु भी थे।

स्वरूप

श्रीमन्महाप्रभुकी कृपासे ये श्रीराधाकृष्ण युगलरसमें उन्मत्त हो उठे। पूर्व लीलामें ये तुगविद्या सखी थीं।

व्रज मे वास

श्रीमन्महाप्रभुके श्रीरङ्गमसे प्रस्थानके कुछ समय पश्चात् वे वृन्दावन चले आये और यहींपर भजन करने लगे। वे कुछ समय काम्यवनमें भी रहे। अंतिम समयमें वे भजन करते-करते यहीं समाधिस्थ हो गये।

अयौक्तिक मान्यता

कुछ अर्वाचीन लोगोंका यह कहना है कि प्रबोधानन्द सरस्वती और काशीवासी अद्वैतवादी प्रकाशानन्द सरस्वती एक ही व्यक्ति हैं। यह सर्वथा अयौक्तिक है। एक ही व्यक्ति पहले भक्त प्रबोधानन्द सरस्वती बीचमें मायावादी प्रकाशानन्द और फिर प्रबोधानन्द सरस्वती हो गया – यह कोरी कल्पना मात्र है। श्रीगौड़ीय वैष्णवाचार्योंने इस अर्वाचीन मतका खण्डन किया है।